हम दीपावली क्यों मनाते हैं/ दीपावली से जुड़ी हुई कहानियां

हम दीपावली क्यों मनाते हैं/ दीपावली से जुड़ी हुई कहानियां

5 Best Deepawali Story

हम दीपावली क्यों मनाते हैं/ दीपावली से जुड़ी हुई कहानियां

दोस्तों, हम सभी जानते हैं कि दीपावली आने वाली है, पर क्या हम जानते हैं कि हम दीपावली क्यों मनाते हैं? बहुत सारी कथाएँ दीपावली से जुड़ी हुई हैं, पर मुख्य कथा क्या है? मुख्य कारण क्या है कि हम दीपावली मनाते हैं? तो आइए जानते हैं कि क्यों हम दीपावली मनाते हैं।”

  “सबसे मुख्य कारण तो यही है कि भगवान श्री राम के अयोध्या में लौटने पर, जब 12 वर्ष का वनवास पूरा करके भगवान श्री राम अयोध्या लौटे थे, तब से ही उनके भव्य स्वागत के लिए अयोध्यावासियों ने दीपक जलाया था। तभी से यह प्रचलन है कि हम भगवान राम का हर साल नव वर्ष में स्वागत करते हैं, दीप जलाते हैं और दीपावली मनाते हैं।”

“पर इसके पीछे और भी कई कहानियाँ हैं। आज हम जानेंगे कि दीपावली मनाने के पीछे और कौन सी कहानियाँ हैं, जिन्हें बहुत कम लोग जानते हैं।”

पहली कहानी तो यही है कि जब भगवान श्री राम ने रावण का वध करके 14 वर्ष का वनवास पूरा किया और माता सीता तथा भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे, तब पूरी अयोध्या जगमगा उठी थी और उनका भव्य स्वागत किया गया था। तभी से दीपावली पर्व मनाया जाता है।

पाँच पांडवों से जुड़ी दूसरी कहानी

पाँच पांडवों से जुड़ी दूसरी कहानी

पाँच पांडवों से जुड़ी दूसरी कहानी

 दूसरी कहानी पाँच पांडवों से जुड़ी हुई है, पाँचों पांडव..”पाँचों पांडव जब 64 के खेल में शकुनि मामा की चालाकी से दुर्योधन से हार गए, तब उन्होंने अपना सब कुछ गंवा दिया। अपना राज्य, संपत्ति और यहां तक कि अपनी पत्नी को गंवाने के बाद, पाँचों पांडव 13 वर्षों के लिए वनवास चले गए। 13 वर्ष का वनवास पूरा करके कार्तिक अमावस्या के दिन जब पाँचों पांडव घर लौटे, तब उनकी वापसी की खुशी में नगरवासियों ने दीप जलाए। तभी से कहा जाता है कि कार्तिक अमावस्या के दिन दीप जलाकर पाँचों पांडवों के आगमन की खुशी मनाई जाती है और दीपावली मनाई जाती है।”

तीसरी कहानी माता लक्ष्मी के अवतार से जुड़ी हुई है।

तीसरी कहानी माता लक्ष्मी के अवतार से जुड़ी हुई है।

तीसरी कहानी माता लक्ष्मी के अवतार से जुड़ी हुई है।

   “तीसरी कहानी माता लक्ष्मी के अवतार से जुड़ी हुई है। धन की देवी और भगवान विष्णु की पत्नी, माता लक्ष्मी को लेकर कहा जाता है कि दानवों ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया था। उनका तीनों लोकों पर अधिकार बढ़ गया था और उन्होंने बहुत ही दुष्ट प्रभाव डालना शुरू कर दिया था। इसके चलते भगवान इंद्र का सिंहासन भी छिन गया था। सभी देवता बहुत घबरा गए थे और दानवों से डरकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे। तब भगवान विष्णु ने उन्हें समुद्र मंथन करने की सलाह दी और उत्पन्न अमृत पीने को कहा, जिससे देवता अमर हो जाएंगे और दानव उनसे हार जाएंगे।””मंथन के दौरान 14 रत्नों के साथ अमृत और विष भी निकला। मंथन में ही देवी लक्ष्मी की उत्पत्ति भी हुई थी, जिन्हें भगवान विष्णु द्वारा अपनी धर्मपत्नी के रूप में स्वीकार किया गया। दीपावली का त्योहार हिंदी कैलेंडर के अनुसार कार्तिक अमावस्या को मनाया जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन समुद्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी ने अवतार लिया था। माता लक्ष्मी को धन और समृद्धि की देवी माना जाता है, इसलिए हर घर में दीप जलाने के साथ-साथ हम माता लक्ष्मी की पूजा भी करते हैं।”

चौथी कहानी है नरकासुर वध की।

चौथी कहानी है नरकासुर वध की।

चौथी कहानी है नरकासुर वध की।

चौथी कहानी है नरकासुर वध की। कागज ज्योति के अनुसार, घर का राजा नरकासुर की उत्पत्ति तब हुई थी जब भगवान विष्णु वराह के रूप में प्रकट हुए थे। कहा जाता है कि उनके स्पर्श से धरती के गर्भ से नरकासुर की उत्पत्ति हुई।”नरकासुर ने अपनी शक्ति से इंद्र, गरुड़, वायु आदि सभी देवताओं को परेशान कर दिया। वह संतों को भी परेशान करने लगा और महिलाओं पर अत्याचार करने लगा। उसने संतों की 16,000 स्त्रियों को भी बंदी बना लिया।”

जब नरकासुर का अत्याचार बहुत बढ़ गया, तब सभी देवता भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए। लेकिन नरकासुर को नारी के हाथों मरने का वरदान था, इसलिए श्रीकृष्ण ने उसके वध के लिए अपनी प्रिय पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया। इंद्र की प्रार्थना सुनकर सत्यभामा इस कार्य के लिए मान गईं। गरुड़ पर सवार होकर श्रीकृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ नरकासुर के राज्य पहुंचे। वहां पहुंचते ही उन्होंने सत्यभामा की मदद से मुरासुर के पुत्र नरकासुर का वध कर दिया।

नरकासुर, युद्ध की सूचना मिलने पर, कई सेनाओं और अपने सेनापति के साथ श्रीकृष्ण से युद्ध करने निकला। चूंकि उसे स्त्री के हाथों मरने का वरदान था, श्रीकृष्ण ने पहले उससे घोर युद्ध किया और फिर सत्यभामा की सहायता से उसे मार दिया। इस प्रकार, श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया।

इस तरह, श्रीकृष्ण ने देवताओं को नरकासुर के आतंक से बचाया और सभी को खुशी दिलाई। सभी ने इस खुशी में दीपावली के कार्तिक अमावस्या के अगले दिन दीपक जलाए, और इसे ‘छोटी दिवाली’ या ‘नरक चतुर्दशी’ के नाम से जाना जाने लगा। तभी से नरक चतुर्दशी और दीपावली का त्योहार मनाया जाने लगा।

यह थीं दीपावली से जुड़ी हुई कहानियां।”

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