
सावन महीना (श्रावण मास) हिन्दू पंचांग का एक अत्यंत पावन और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण महीना है। यह महीना भगवान शिव को समर्पित होता है और वर्षा ऋतु के दौरान आता है। यह विशेष रूप से जुलाई से अगस्त के बीच मनाया जाता है (चंद्र पंचांग के अनुसार)। इस माह का विशेष महत्व शैव भक्तों के लिए होता है।
🌿 सावन महीने का धार्मिक महत्व:
- भगवान शिव की आराधना:
सावन मास में शिवजी की पूजा, रुद्राभिषेक, और जलाभिषेक विशेष रूप से किए जाते हैं। शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा आदि अर्पित किया जाता है।
भगवान शिव की आराधना हर उस व्यक्ति को करनी चाहिए जो अपने जीवन में शांति, शक्ति, ज्ञान, संयम और मोक्ष की कामना करता है। शिव केवल एक देव नहीं, बल्कि संहारक और सृष्टिकर्ता दोनों के रूप हैं। उनकी भक्ति सरल, सच्ची और हृदय से की जाती है।
🔱 शिव आराधना कैसे करें?
- “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जप करें
- शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा अर्पित करें
- सावन सोमवार या प्रदोष व्रत रखें
- शिव चालीसा या रुद्राष्टक का पाठ करें
- ध्यान और मौन साधना करें
महत्वपूर्ण साधना
श्रावण महीना भगवान शिव का प्रिय महीना है, जिसमें भोलेनाथ भगवान शंकर की साधना करने से वे प्रसन्न होते हैं और जीवन की सारी इच्छाओं को पूर्ण कर देते हैं, उच्च कोटि के योगी, यति, साधु, संन्यासी तो साल भर से श्रावण महीने की प्रतीक्षा करते रहते हैं, जिससे कि वे इन तीस दिनों में जीवन की अद्वितीय साधना सम्पन्न कर अपने मन के सारे विचारों को और जीवन की सारी इच्छाओं को पूर्णता दे सके, सफलता प्राप्त कर सके और समस्त रोगों तथा पापों से निवृत्त होकर जीवन का पूर्ण आनन्द प्राप्त कर सकें।
सर्वमनोकामना सिद्धि साधना
इस वर्ष श्रावण महीना ११ जुलाई २०१५ से ६ अगस्त २०२५ तक है, जो साधना की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है।किसी विशेष जाति या धर्म से सम्बन्धित यह साधना नहीं है, अपितु यह साधना तो प्रत्येक साधक, सन्यासी और योगी के लिए समान रूप से महत्त्वपूर्ण है, ऐसे अवसर पर साधना सिद्ध करने से निश्चय ही दुर्लभ योग का लाभ होता है, सौभाग्य की प्राप्ति होती है और जीवन के सारे मनोरथ पूर्ण होते हैं।वास्तव में ही हमारे जीवन का सौभाग्य है, कि हमारे जीवन में ही ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से पूर्ण सिद्ध योग उपस्थित हुआ है और ऐसे योग में महत्त्वपूर्ण ‘मनोकामना सिद्धि साधना’ सम्पन्न कर के उन सारे अभावों, परेशानियों को बाधाओं को दूर कर सकते है, जो हमारे जीवन में बाधाकारक है तथा उन समस्त कार्यों का लाभ उठा सकते है, जिससे कि हमारे जीवन में प्रगति हो सके।
श्रावण महीने में चार महत्वपूर्ण सौम्य आ रहे हैं।
- लक्ष्मी प्राप्ति के लिए और लक्ष्मी को घर में स्थायित्व देने के लिए।
- नौकरी लगन, बेकारी दूर होने व नौकरी में प्रमोशन के लिए।
- व्यापार वृद्धि एवं व्यापार में सफलता प्राप्ति के लिए।
- ऋण समाप्त होने और निरन्तर उन्नति के लिए।
- आकस्मिक धन लाभ के लिए।
सर्व कार्य सिद्धि प्रयोग

निम्न कार्यों की पूर्ति के लिए और जीवन में सभी दुर्दशाओं से सफलता के लिए यह प्रयोग जानना चाहिए।
- अखण्ड सौभाग्य प्राप्ति एवं पति या पत्नी की पूर्ण आयु के लिए।
- सन्तान की सुरक्षा, उनकी सफलता एवं पुत्र की उन्नति के लिए।
- कन्या के शीघ्र विवाह और उसके योग्य वर प्राप्ति के लिए।
- घर में पूर्ण सुख-शान्ति के लिए।
- पूर्ण सौन्दर्य एवं यौवन प्राप्ति के लिए।
2.सावन सोमवार व्रत का महत्व
सावन का महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। इस महीने में किए गए व्रत, पूजा-पाठ और विशेष रूप से सावन के सोमवार के व्रत का अत्यधिक महत्व है। मान्यता है कि इस महीने में भगवान शिव धरती पर ही निवास करते हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
सावन के सोमवार का व्रत कई कारणों से महत्वपूर्ण माना जाता है:
- मनोकामना पूर्ति: यह व्रत रखने से भगवान शिव और माता पार्वती शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। खासकर अविवाहित कन्याओं को मनचाहा वर प्राप्त होता है और सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है।
- ग्रहों की शांति: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सोमवार का दिन चंद्रमा का दिन होता है और चंद्रमा भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान हैं। इसलिए सोमवार का व्रत रखने से चंद्रमा से संबंधित दोषों की शांति होती है और कुंडली में ग्रहों की स्थिति मजबूत होती है।
- रोगों से मुक्ति: इस व्रत को करने से शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति स्वस्थ जीवन व्यतीत करता है।
- पापों का नाश: सच्चे मन से और विधि-विधान से सावन सोमवार का व्रत करने से जाने-अनजाने में किए गए पापों का नाश होता है।
- मोक्ष की प्राप्ति: यह व्रत व्यक्ति को आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर करता है और अंततः मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होता है।
- पारिवारिक सुख-शांति: इस व्रत से घर में सुख-शांति बनी रहती है, परिवार में प्रेम और सद्भाव बढ़ता है।
सावन सोमवार व्रत कथा
सावन सोमवार व्रत की कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक कथा इस प्रकार है:
पौराणिक कथा के अनुसार, एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसके पास धन-दौलत की कोई कमी नहीं थी, लेकिन वह संतानहीन होने के कारण बहुत दुखी रहता था। पुत्र प्राप्ति की कामना से वह प्रत्येक सोमवार को व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करता था।
एक दिन उसकी भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने भगवान शिव से साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का आग्रह किया। भगवान शिव ने पहले तो कहा कि ‘हे पार्वती! इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो, उसे भोगना ही पड़ता है।’ लेकिन माता पार्वती के अत्यधिक आग्रह पर भगवान शिव ने साहूकार को पुत्र प्राप्ति का वरदान तो दिया, पर साथ ही यह भी कहा कि उसके बालक की आयु केवल बारह वर्ष ही होगी।
माता पार्वती और भगवान शिव की यह बातचीत साहूकार सुन रहा था। उसे न तो इस बात की खुशी हुई और न ही दुख। वह पहले की भांति शिवजी की पूजा करता रहा। कुछ समय बाद साहूकार की पत्नी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हुआ, तो साहूकार ने उसे पढ़ने के लिए काशी भेजने का निर्णय लिया। उसने अपने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन देते हुए कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ और रास्ते में यज्ञ कराते जाना तथा ब्राह्मणों को भोजन-दक्षिणा देते हुए जाना।
मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते हुए काशी नगरी निकल पड़े। रास्ते में एक नगर पड़ा, जहाँ नगर के राजा की कन्या का विवाह था। लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था, वह एक आंख से काना था। यह बात राजा ने छिपा रखी थी। जब बारात आई, तो वर पक्ष को डर था कि यदि राजा को वर के काने होने का पता चल गया, तो वे विवाह नहीं करेंगे। तब उन्होंने साहूकार के पुत्र को राजकुमार की जगह बैठा दिया और विवाह संपन्न करा लिया।
विवाह के बाद, जब साहूकार का पुत्र जाने लगा, तो उसने चुपके से राजकुमारी की ओढ़नी पर लिख दिया: “तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ है, मैं काशी पढ़ने जा रहा हूँ। जिस राजकुमार से तुम्हारा विवाह हुआ है, वह एक आंख से काना है।”
जब राजकुमारी ने वह लिखा हुआ पढ़ा, तो उसने काने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया और सारी बात राजा को बताई। राजा ने साहूकार के पुत्र को खोजा और सारी सच्चाई जानकर उसे वापस बुलाया।
उधर, मामा-भांजे आगे बढ़े और जब बालक की आयु बारह वर्ष पूरी हुई, तो उसने एक जगह यज्ञ किया। वहाँ बालक की मृत्यु हो गई। मामा बहुत दुखी हुआ और उसने बालक के शव को ढककर रखा, ताकि किसी को पता न चले। उसी समय भगवान शिव और माता पार्वती उधर से निकल रहे थे। माता पार्वती की नजर मृत बालक पर पड़ी, तो वह पहचान गईं कि यह तो उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे भगवान शिव ने बारह वर्ष की आयु का वरदान दिया था।
माता पार्वती ने भगवान शिव से उस बालक को जीवित करने का आग्रह किया। भगवान शिव ने कहा कि ‘पार्वती, यह तो विधि का विधान है।’ लेकिन माता पार्वती के बार-बार अनुरोध करने पर भगवान शिव ने बालक को जीवित कर दिया। बालक जीवित होकर उठ बैठा।
जब मामा-भांजे अपने घर लौटे, तो साहूकार और उसकी पत्नी ने देखा कि उनका पुत्र जीवित है। वे अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने भगवान शिव का धन्यवाद किया। इस प्रकार, सावन सोमवार के व्रत और भगवान शिव की कृपा से साहूकार को पुत्र प्राप्त हुआ और उसका जीवन सुखमय हो गया।
इसलिए, मान्यता है कि जो भी व्यक्ति सावन के सोमवार का व्रत सच्ची श्रद्धा और निष्ठा से करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और उसे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

🕉️ 3. समुद्र मंथन और शिव द्वारा विषपान:
पौराणिक कथा अनुसार, समुद्र मंथन के समय निकले कालकूट विष को जब भगवान शिव ने पिया, तो उनका शरीर जलने लगा। तब समस्त देवताओं ने उन्हें शीतलता प्रदान करने के लिए निरंतर गंगाजल अर्पित किया। तभी से सावन में जलाभिषेक की परंपरा आरंभ हुई।
🛕 4. कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व:
इस माह में लाखों श्रद्धालु गंगाजल लेने के लिए तीर्थस्थलों से पैदल यात्रा कर शिव मंदिरों में जल चढ़ाते हैं। इसे ‘कांवड़ यात्रा’ कहते हैं। यह शिव भक्ति का एक अत्यंत भावनात्मक व दिव्य स्वरूप है।
इस यात्रा में शिव भक्त ‘कांवड़’ नामक एक विशेष प्रकार की बहंगी (बैलेंसिंग पोल) पर गंगाजल के कलशों को रखकर पैदल यात्रा करते हुए विभिन्न शिवालयों तक पहुंचते हैं और उस जल से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। इस यात्रा का हिन्दू धर्म में अत्यधिक विशेष महत्व माना जाता है।
कांवड़ यात्रा का महत्व:
- भगवान शिव के प्रति अटूट श्रद्धा: कांवड़ यात्रा भगवान शिव के प्रति भक्तों की गहरी आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है। यह यात्रा दर्शाती है कि भक्त अपने आराध्य के लिए किसी भी शारीरिक कष्ट को सहने के लिए तैयार हैं।
- गंगाजल का पवित्र महत्व: गंगा नदी को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक करने से सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कांवड़ यात्री गंगा के विभिन्न पवित्र घाटों (जैसे हरिद्वार, गंगोत्री, गोमुख, सुल्तानगंज) से जल भरते हैं और उसे पैदल चलकर शिव मंदिरों तक ले जाते हैं।
- तपस्या और त्याग: कांवड़ यात्रा एक कठिन तपस्या के समान है। लंबी दूरी तक नंगे पैर चलना, भारी कांवड़ को कंधे पर ढोना, और यात्रा के दौरान सात्विक जीवन शैली का पालन करना – ये सभी भक्त के त्याग और समर्पण को दर्शाते हैं।
- मनोकामना पूर्ति: भक्तों का मानना है कि कांवड़ यात्रा करने और भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक करने से उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। अविवाहितों को सुयोग्य जीवनसाथी मिलता है, संतानहीन को संतान की प्राप्ति होती है, और धन-धान्य की वृद्धि होती है।
- सामुदायिक भावना और एकता: यह यात्रा लाखों भक्तों को एक साथ लाती है। विभिन्न पृष्ठभूमि के लोग एक ही उद्देश्य के साथ यात्रा करते हैं, जिससे उनमें भाईचारे और सामुदायिक एकता की भावना बढ़ती है। रास्ते भर “बम-बम भोले”, “हर-हर महादेव” के जयकारे गूंजते रहते हैं, जिससे एक आध्यात्मिक और ऊर्जावान वातावरण बनता है।
- स्वास्थ्य लाभ: कुछ लोग इसे एक प्रकार की शारीरिक और मानसिक शुद्धि भी मानते हैं। पैदल यात्रा करने से शरीर स्वस्थ रहता है और धार्मिक वातावरण मन को शांति प्रदान करता है।
- पौराणिक संबंध: कांवड़ यात्रा का संबंध कई पौराणिक कथाओं से भी जोड़ा जाता है। एक प्रचलित कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब विष निकला और संसार पर संकट आ गया, तब भगवान शिव ने उस विष का पान कर लिया। विष के प्रभाव को कम करने के लिए, देवताओं ने भगवान शिव पर गंगाजल अर्पित किया था। इसी घटना की स्मृति में भक्त श्रावण मास में गंगाजल लेकर शिवजी का अभिषेक करते हैं। एक अन्य कथा भगवान परशुराम से भी जुड़ी है, जिन्होंने शिव का अभिषेक करने के लिए गंगाजल कांवड़ में ले जाकर चढ़ाया था।
- सामाजिक समरसता: कांवड़ यात्रा के दौरान, विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोग भी भक्तों की सेवा में लगे रहते हैं, जिससे सामाजिक समरसता और सौहार्द का माहौल बनता है।
संक्षेप में, कांवड़ यात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आस्था, तपस्या, त्याग और सामाजिक समरसता का एक अद्भुत संगम है, जो भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता को गहराई से दर्शाता है।

🌿 5. व्रत, दान और संयम का माह:
सावन में व्रत, ध्यान, मंत्र जाप, और सत्कर्मों का विशेष फल मिलता है। इस माह में तामसिक भोजन, मदिरा, क्रोध, झूठ और आलस्य से दूर रहने की सलाह दी जाती है। यह आत्मशुद्धि और संयम का महीना है।
🎋 6. हरियाली तीज व नाग पंचमी जैसे पर्व:
सावन में सुहागिन महिलाओं द्वारा हरियाली तीज मनाई जाती है, जिसमें वे शिव-पार्वती के मिलन की कथा सुनती हैं।
नाग पंचमी पर नाग देवता की पूजा कर रक्षा और सुख-शांति की कामना की जाती है।
हरियाली तीज का पर्व मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा पति की लंबी आयु और अविवाहित कन्याओं द्वारा मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। यह त्योहार सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को आता है।
महत्व:
- पार्वती-शिव का मिलन: यह पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी, और इसी दिन भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था।
- अखंड सौभाग्य: विवाहित महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं और भगवान शिव तथा माता पार्वती की पूजा करती हैं। ऐसा माना जाता है कि यह व्रत रखने से पति की आयु लंबी होती है और वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
- हरियाली और प्रकृति: यह त्योहार सावन के हरे-भरे माहौल में आता है, जब प्रकृति अपनी पूरी छटा बिखेरती है। चारों ओर हरियाली होती है, इसलिए इसे ‘हरियाली तीज’ कहते हैं। इस दिन झूले झूलने का भी विशेष महत्व है।
- श्रृंगार का महत्व: महिलाएं इस दिन सोलह श्रृंगार करती हैं, हरे रंग के वस्त्र पहनती हैं, मेंहदी लगाती हैं और पारंपरिक गीत गाती हैं। यह नारी के सौंदर्य और उल्लास का भी पर्व है।

नाग पंचमी (Nag Panchami)
नाग पंचमी का पर्व श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता की पूजा का विशेष महत्व है।
महत्व:
- नाग देवताओं की पूजा: यह पर्व नाग देवताओं के प्रति श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करने के लिए समर्पित है। इस दिन नागों को दूध, लावा (भुना हुआ धान), और फल आदि अर्पित किए जाते हैं।
- सर्पदोष से मुक्ति: ऐसी मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करने से सर्पदोष से मुक्ति मिलती है और सांप के काटने का भय नहीं रहता। यह भी माना जाता है कि नाग देवता धन के रक्षक होते हैं, इसलिए उनकी पूजा से धन-धान्य की वृद्धि होती है।
- पारिस्थितिक संतुलन: यह पर्व हमें प्रकृति में नागों के महत्व को भी समझाता है, क्योंकि वे किसानों के लिए उपयोगी होते हैं (चूहों और अन्य कीटों को खाकर फसल की रक्षा करते हैं)।
- पौराणिक कथाएं: नाग पंचमी से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं। एक कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण ने बचपन में कालिया नाग का मर्दन किया था, और उसी दिन से नाग पूजा का विधान शुरू हुआ। एक अन्य कथा में, नागों की उत्पत्ति और उनके महत्व का वर्णन मिलता है, जिसमें यह भी बताया गया है कि नाग देवता पाताल लोक के संरक्षक हैं और भगवान शिव के गले में भी नाग विराजमान हैं।
ये दोनों पर्व सावन माह को धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से और भी समृद्ध बनाते हैं। ये भारतीय परंपराओं में प्रकृति, परिवार और भक्ति के गहरे जुड़ाव को दर्शाते हैं।

✨ निष्कर्ष:
सावन केवल एक महीना नहीं, बल्कि भक्ति, प्रकृति, संयम, और आध्यात्मिक ऊर्जा का उत्सव है। इस समय की गई पूजा और तपस्या व्यक्ति के जीवन में शुभता, समृद्धि और शांति का मार्ग प्रशस्त करती है। जो श्रद्धा से इस माह को जीता है, उसके जीवन में शिव की कृपा सदैव बनी रहती है।
🔔 ॐ नमः शिवाय 🔔