
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा : एक विस्तृत विवरण (हिंदी में)
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा, ओडिशा राज्य के पुरी नगर में हर वर्ष बड़े धूमधाम से मनाया जाने वाला एक भव्य और ऐतिहासिक उत्सव है। यह भारत के सबसे प्रसिद्ध धार्मिक उत्सवों में से एक है और भगवान श्रीकृष्ण, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को समर्पित है। इस रथ यात्रा का आयोजन आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होता है, जो आमतौर पर जून या जुलाई महीने में आता है।
इतिहास और महत्व :
जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में राजा अनंतवर्मन चोडगंग ने कराया था। मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। ‘जगन्नाथ’ का अर्थ है – ‘जगत के नाथ’ यानी सम्पूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी।
रथ यात्रा का मुख्य उद्देश्य भगवान जगन्नाथ को उनके मौसी के घर (गुंडिचा मंदिर) ले जाना होता है, जहाँ वे 7 दिनों तक विश्राम करते हैं और फिर पुनः वापस श्रीमंदिर लौटते हैं। यह यात्रा यह संदेश देती है कि भगवान स्वयं अपने भक्तों के पास आते हैं।
मुख्य पात्र :
- भगवान जगन्नाथ – श्रीकृष्ण का रूप।
- भगवान बलभद्र – श्रीकृष्ण के बड़े भाई।
- देवी सुभद्रा – श्रीकृष्ण की बहन।
तीनों रथों का विवरण :
भगवान का नाम | रथ का नाम | रंग | पहियों की संख्या | ऊँचाई (फीट) | रथ खींचने की रस्सी का नाम |
---|---|---|---|---|---|
भगवान जगन्नाथ | नन्दीघोष | लाल और पीला | 16 | लगभग 45 | शंखचूड़ा नागिनी |
भगवान बलभद्र | तलध्वज | लाल और नीला | 14 | लगभग 44 | वासुकी |
देवी सुभद्रा | पद्मध्वज | लाल और काला | 12 | लगभग 43 | स्वर्णचूड़ा नागिनी |

यात्रा का क्रम:
- पहला दिन – रथ यात्रा आरंभ: तीनों रथ श्रीमंदिर से गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। लाखों श्रद्धालु रथ को खींचते हैं।
- दूसरे दिन – रथ गुंडिचा मंदिर पहुँचते हैं।
- सात दिन – भगवान वहीं विश्राम करते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं।
- दसवें दिन – बहुड़ा यात्रा (वापसी यात्रा): भगवान पुनः श्रीमंदिर लौटते हैं।
- गर्भगृह में वापसी से पूर्व – सुनाबेसा (स्वर्ण वस्त्र धारण): भगवान स्वर्ण आभूषण पहनकर दर्शन देते हैं।
- निलाद्री बीजे: भगवान जगन्नाथ वापस श्रीमंदिर में प्रवेश करते हैं।
विशेष परंपराएँ:
- चेरापहड़ा: रथ यात्रा शुरू करने से पहले पुरी के राजा ‘गजपति महाराज’ झाड़ू लगाते हैं। यह सेवा भाव और विनम्रता का प्रतीक है।
- रथ खींचना: भक्तजन यह मानते हैं कि रथ की रस्सी खींचने से पुण्य की प्राप्ति होती है और पाप कटते हैं।
- भजन-कीर्तन और झांकी: यात्रा के दौरान भव्य भजन, नृत्य, ढोल-नगाड़े और झांकियाँ होती हैं।

श्रद्धालुओं की भीड़:
हर साल यह आयोजन विश्वभर से लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। भारत के कोने-कोने से, और विदेशों से भी, भक्त पुरी आते हैं। इसका सीधा प्रसारण भी टीवी और ऑनलाइन माध्यमों पर किया जाता है।
मान्यताएँ:
- कहते हैं कि जो व्यक्ति रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचता है, उसे जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलती है।
- ऐसा भी माना जाता है कि यह यात्रा भगवान जगन्नाथ के धरती पर आगमन का प्रतीक है।
आधुनिक युग में रथ यात्रा:
वर्तमान में रथ यात्रा को वैश्विक स्तर पर प्रसिद्धि मिली है। दुनिया के कई देशों जैसे अमेरिका, इंग्लैंड, रूस आदि में भी इस पर्व का आयोजन होता है, विशेषकर ISKCON संस्था द्वारा।
🔱 जगन्नाथ पुरी की पूरी कहानी (पूर्ण कथा हिन्दी में) 🔱
जगन्नाथ पुरी की कहानी सिर्फ एक मंदिर या एक यात्रा की नहीं, बल्कि ईश्वर की भक्तों के लिए करुणा, विश्वास, भक्ति, और प्रेम की अद्भुत गाथा है। यह कथा श्रीकृष्ण के एक ऐसे रूप की है जो अपने भक्तों के लिए अपने नियम भी बदल देते हैं। आइए जानते हैं इस दिव्य और रहस्यमयी कथा को।

🕉️ जगन्नाथ मंदिर की कथा का प्रारंभ:
बहुत समय पहले, सतयुग में, एक महान राजा हुआ करते थे – राजा इन्द्रद्युम्न। वे भगवान विष्णु के परम भक्त थे। एक दिन उन्होंने यह सुना कि पृथ्वी पर श्रीहरि का एक अत्यंत दिव्य और रहस्यमयी रूप है जो नीले रंग का है और जंगल में एक लकड़ी के रूप में प्रकट हुआ है।
उन्हें बताया गया कि यह रूप नीलमाधव कहलाता है और उड़ीसा के एक आदिवासी राजा विश्ववसु के घर में गुप्त रूप से पूजित होता है।
🔍 नीलमाधव की खोज:
राजा इन्द्रद्युम्न ने अपने पुरोहित विद्यापति को उस स्थान की खोज में भेजा। विद्यापति ने विश्ववसु की पुत्री ललिता से विवाह किया और तब विश्ववसु ने उसे नीलमाधव के दर्शन कराए। विद्यापति ने यह सूचना राजा को दी। राजा ने तुरन्त यात्रा की लेकिन तब तक नीलमाधव का वह रूप अंतर्धान हो गया।
राजा बहुत दुखी हुए, और उन्होंने वहीँ पर व्रत और तपस्या की। तभी उन्हें आकाशवाणी हुई कि समुद्र किनारे एक दारू (लकड़ी) का विशाल लठ्ठा बहकर आएगा, जिसमें भगवान का रूप छिपा होगा। उसी लकड़ी से भगवान की मूर्तियाँ बनेंगी।
🌊 दिव्य लकड़ी का आगमन:
जैसे ही लकड़ी समुद्र से तट पर आई, राजा ने मूर्तियाँ बनवाने का कार्य आरंभ करवाया। लेकिन कोई भी कारीगर उस लकड़ी को नहीं काट पाया। तभी वहाँ एक रहस्यमयी वृद्ध बढ़ई आया और कहा कि वह मूर्तियाँ बनाएगा लेकिन एक शर्त पर – जब तक वह कार्य करता रहेगा, कोई अंदर नहीं झाँकेगा।
राजा ने सहमति दे दी। वृद्ध ने कमरा बंद कर लिया और भीतर मूर्तियाँ बनाना शुरू किया। कई दिन बीत गए और अंदर से कोई आवाज नहीं आई। राजा चिंतित हुए और दरवाज़ा खोल दिया। जैसे ही दरवाज़ा खुला – वृद्ध कारीगर अंतर्धान हो गया।
🙏 अधूरी मूर्तियाँ:
राजा ने देखा कि भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ बनी हैं लेकिन उनके हाथ-पैर अधूरे हैं। राजा दुखी हो गए, परंतु तभी उन्हें आकाशवाणी हुई – “हे राजन! यही मेरा वास्तविक रूप है। मैं इसी रूप में संसार में पूजित होना चाहता हूँ।”
इस प्रकार अधूरी मूर्तियों को ही मंदिर में प्रतिष्ठित किया गया।

🛕 श्री जगन्नाथ मंदिर का निर्माण:
राजा इन्द्रद्युम्न ने पुरी में भगवान के लिए भव्य मंदिर बनवाया। यह मंदिर भगवान विष्णु के चार धामों में से एक है और इसे ‘जगन्नाथ धाम’ कहा जाता है।
जगन्नाथ रूप में श्रीकृष्ण:
भगवान जगन्नाथ दरअसल श्रीकृष्ण का रूप हैं। यह वही स्वरूप है जब श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद उनका हृदय बचा रह गया था। पौराणिक मान्यता है कि वही हृदय आज भी जगन्नाथ जी की मूर्ति के अंदर एक पवित्र वस्तु के रूप में सुरक्षित है जिसे ‘ब्राह्म तत्व’ कहते हैं।

🌟 चमत्कार और विशेषताएँ:
- मूर्तियाँ हर 12 साल में बदली जाती हैं जिसे ‘नवकलेवर’ कहते हैं।
- मंदिर के ऊपर ध्वज (धजाजी) हवा के विपरीत दिशा में लहराता है।
- मंदिर की छाया दिन में किसी समय भी ज़मीन पर नहीं पड़ती।
- मंदिर के मुख्य शिखर पर जाकर पुजारी रोज़ झंडा चढ़ाते हैं, वो भी बिना किसी मशीनरी के।
- सिंहद्वार पार करते ही समुद्र की लहरों की आवाज़ सुनाई देना बंद हो जाती है।
📿 जगन्नाथ के भक्तों के लिए संदेश:
जगन्नाथ जी का यह स्वरूप यह दर्शाता है कि भगवान रूप, आकार, या शारीरिक सुंदरता में नहीं, भावना और भक्ति में रहते हैं। अधूरे हाथ-पैर वाली मूर्तियाँ हमें यह सिखाती हैं कि परिपूर्णता, ईश्वर की कृपा और हमारी श्रद्धा में होती है।
जगन्नाथ पुरी की यह पूरी कथा केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि भक्त और भगवान के रिश्ते की एक अमूल्य धरोहर है। यह हमें सिखाती है कि यदि हमारी श्रद्धा सच्ची हो, तो भगवान स्वयं हमें दर्शन देने आते हैं।

Note: मऊ रोड के जगन्नाथ मंदिर का 80 फीट ऊँचा शिखर बनेगा, रथयात्रा के बाद शुरू होगा काम।